हिंदी दिवस मनाएँ ऐसे,
जिसमें भाव प्रवणता हो।
दिल ही नहीं दिमागों में भी ,
कार्य करने की क्षमता हो।।
हिंदी हमारी मातृभाषा है,
इसको सदा सशक्त करें।
यही तो जनवाणी है ,
इसको सदा प्रशस्त करें।
मानवता की बात सदा ,
इसमें ही गाई जाती है।
दशमलव की परिभाषा भी,
इसमें ही समझायी जाती है।
संस्कार भी हिंदी से आती,
इसमें अपसंस्कृति का नाम नहीं।
यह इतनी सहज सरल भाषा है,
जिसमें तनिक विराम नहीं।
विरासत की गरिमा है इसमें,
मर्यादा की अभिव्यक्ति है।
विश्वास सदा है इसके प्रति ,
इस भाषा की बड़ी शक्ति है।
पचहत्तर वर्ष पूरे हुए ,
राजभाषा के रूप में।
जनमानस में यह रची-बसी ,
स्वर्णिम संपदा स्वरूप में।
जीवन को आलोकित है करती ,
इसमें ही जीवन का सार है।
कर्मठता पैदा करती यह ,
इसमें गुणों की भरमार है।।
समझें और समझाएँ इसमें ,
इस भाषा का कोई जोड़ नहीं।
व्यष्टि ही नहीं समष्टि में भी,
इस भाषा का कोई तोड़ नहीं।
अपनी भाषा, अपनी लिपि को,
सदा सशक्त बनाएँ हम।
इसमें ही है प्रभुता हमारी,
इससे सदा जुड़ जाएँ हम।।
यह अपनेपन की भाषा है,
इससे सदा सहज सरोकार है।
यह भाषा अमृत वृष्टि करती,
यह इसका सदा उपकार है।।
पाएँ हम इससे विद्या ,
सदा पाएँ संस्कार इससे।
मार्ग सदा निष्कंटक हो ,
जीवन सुरभित हो जिससे।।
यह तरुणाई की वेला है ,
इस भाषा का है शिखर प्रखर।
जीवन में उजियारा लाने को,
है धरा बड़ी उर्वर उर्वर।।
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर