अजर अमर शैली,
भाषा है गौरवशाली,
देवगण उवाचते,धरा पर पहचान।
सरल सरस वाणी,
अपनाया हर ज्ञानी,
शब्दावली बना कर,पिरोया मधुर गान।
अथाह सागर हिंदी,
मिल रहा अधिगम,
विस्तारित चहुंमुखी,जगत में मिला मान।
पराये धरती पर,
सहर्षता से स्वीकार,
अतुल्य प्रवाह मिला,हिंदी है हमारी शान।
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छंद दोहा,गुरुवाणी,
सुन कविता कहानी,
प्यारी थपकियाँ गहे,गले लगाया अंजान।
संस्कृत है महतारी,
हिंदी है उसकी पुत्री,
पली-बढ़ी यहाँ पर,बसी है उसमें जान।
स्वर,व्यंजन है थाती,
जोड़ कर जले बाती,
जन मन हो प्रदिप्त,कर रहा अभिमान।
भाषा जन्म लेते रहा,
हिंदी बना सिरमौर,
करे नहीं परेशानी,रचे कहानी महान।
एस.के.पूनम
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