हिन्दी – डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या

सहज सृजन की कुंजी,

भावगम्य मनमोहक पूंजी।

सुरम्य गीत संगीत सुधारस तृप्ति,

कथा पटकथा चलचित्र समग्र सृष्टि।

हिंदी!

स्वर व्यंजन वर्ण,

शब्द विन्यास बहुरंग।

सरल सुलेख्य सुपाठ्य,

भीतर बाहर छद्मरहित एकरंग।

हिंदी!

विशाल, क्रमशः बढ़ती,

बोली भाषा समाहित करती।

नये शब्द , नव विहान गढ़ती,

विश्व का परिधान धारण करती।

हिंदी!

दिल में रची-बसी,

रोम-रोम को पुलकित करती,

बेहद खास अनन्य रसधार बहाती,

माँ के दुलार की बोली में मिठास घोलती।

हिंदी!

घर-बाजार, खेत-खलिहान,

विविध रूप धारण करती।

सरकार करती एलान,

राजभाषा हिंदी है परेशान।

हिंदी!

अपने घर में उपेक्षा से हलकान,

अंग्रेजी प्रशासन में विराजमान।

विधि नियम सर्वत्र ढूंँढती सम्मान,

कब तक मनाएँगे हिंदी दिवस श्रीमान्।

डॉ स्नेहलता द्विवेदी आर्या

उत्क्रमित कन्या मध्य विद्यालय

शरीफगंज, कटिहार, बिहार

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