है धरा आज फिर मुस्काई

Priti

है धरा आज फिर मुसकाई ,
है चली आज फिर पुरवाई
घनघोर घटा फिर से छाई,
खुश होकर झूमे अमराई ।
छाया नभ में काला बादल,
है उमड़- घुमड़ कर बरस रहा,
धरती की प्यासी अधरों में,
देखो अमृत रस घोल रहा ।
बदरा भी देखो झूम-झूम,
खुशियों के संदेशे बाँट रहा ।
मधुवन में फूलों की खुशबू से,
अन्तरमन भी महक उठा ।
है झूम -झूम बरसा जलधर,
खेतों में झूमे है हलधर,
बागों में नाचे है मयूरा,
कुहके मधुवन में कोयलिया,
पपीहे का मन भी भींग उठा,
जल की बूँदों से तृप्त हुआ ।
वृक्ष-वल्लभ सारे झूम उठे,
और झूम उठी सारी फिजायें ।
छम- छम छम -छम मेघा बरसे
देख -देख है मनमा हरसे,
फिर होगी चहुँओर हरियाली ,
आयेगी फिर से हरियाली ।
फिर से वसुधा लहलहाएगी ,
मन्द -मन्द फिर मुस्काएगी ।
प्रीति
GMS MOW VIDYAPATINAGAR SAMASTIPUR

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