मनहरण घनाक्षरी छंद
रंगों का त्योहार आया,
खुशियां अपार लाया,
आपस की बैर भूल, गले मिलें होली में।
गली-गली मचा शोर,
खुशी छाई चहुं ओर,
बाल, वृद्ध, युवा रंग- खेलें हमजोली में।
बजे ढोलक मृदंग,
भींगा रंग अंग-अंग,
लोग फाग गा रहे हैं, रस घोल बोली में।
लेके हाथों में गुलाल,
चलें मोर जैसे चाल,
नर-नारी निकले हैं, मिलकर टोली में।
जैनेन्द्र प्रसाद रवि’
म.वि. बख्तियारपुर, पटना
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