आधुनिक नारी-रूचिका राय

Ruchika

आधुनिक नारी

आधुनिक भारत की हूँ मैं नारी,
नही अबला नही हूँ मैं बेचारी,
पहुँच जाऊँगी मैं चाँद तक भी,
इसके लिए करती हूँ मैं तैयारी।

रीतियों का सदा निर्वहन करती,
संस्कारों का मैं संवहन करती,
मान मर्यादा प्रतिष्ठा के लिए सदा,
जिम्मेदारियों का वहन करती।

बेटी बहन माँ की जिम्मेदारी निभाती,
पति पुत्र पिता भाई पर वारी जाती,
हर सुख दुख की संगिनी बनकर,
जमाने की चाल से चाल मिलाती।

फूलों सी नाजुक कली कहलाती,
पत्थर सी कठोर भी मैं बन जाती,
दया सहनशीलता समर्पण गुण है
जीवन मूल्यों के सच्चे अर्थ बतलाती।

हाँ आधुनिक भारत की नारी हूँ मैं,
हर क्षेत्र में धाक सदा ही जमाती,
घर बाहर दोनो की जिम्मेदारी निभाकर,
अपनी सदा ही मैं पहचान बनाती।

रूचिका राय
रा उ म वि तेनुआ
गुठनी सिवान बिहार

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