पाषाण की व्यथा – मो.मंजूर आलम

Nawab

रोक कर चौराहे पर
बोला एक दिन मुझसे
क्या तुम देख सकते हो?
लथपथ हूं खून से मैं!
छलनी है मेरा बदन
रो और तड़प रहा हूं
सिसक रहा हूं …
जानते हो क्यूं?
आज एक दुष्ट पापी ने
मुझे उठाकर
एक निर्दोष को मारा है…
ज़ख्मी वो हुआ है
लेकिन
मैं मरणासन्न हूं
जब कभी भी कोई
किसी निर्दोष को
मेरा प्रयोग कर
ज़ख्मी कर देता है
तो
मैं भी ज़ख्मी हो जाता हूं!
कुछ कह नहीं पाता हूं
सो,
हो जाता हूं मौन
और यह जाता हूं अवाक
परमेश्वर से जोड़ लेता हूं हाथ
हे ईश्वर !
निर्दोष हूं मैं
मुझे क्षमा करना
लेना न मेरा हिसाब!

© ✍️ मो.मंजूर आलम ‘नवाब मंजूर’
प्रधानाध्यापक,उमवि भलुआशंकरडीह
तरैया ( सारण ) बिहार।

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