मंहगाई – जयकृष्ण पासवान

Jaykrishna

बिन गोली तलवार बिना,
कमर टूट रही है।
भारत के कोने -कोने में, हहकार मच रही है ।।
कौन है भाई ,कहां का भाई
वह है महंगाई ,वह है महंगाई।
छोटा बड़ा सब कह रहा है,
कैसी यह रणनीति है।
खेतों में जो काम कर रहा,
उसके साथ क्या बीती है।।
रो-रो कर वो सिसक रहा,
कैसा यह अम्बार है ।
“पर्वत से भी आगे बढ़ता” महंगाई सरकार है ।।
“यही दीवाना यहीं परवाना”
सब का यही कहना है।
“इस देश में अब कैसे जियूं”
महंगाई मस्त जमाना है।।
एक दूजे से मिलकर दुनिया में”आपस में फूट रही है”
बिन गोली तलवार बिना, कमर टूट रही है।
“भारत के कोने कोने में” हहकार मच रही है ।।
मुझे बचाओ, मुझे बचाओ
“येआवाज आ रही है देखो”
उन निर्दोष जंगलों से।
“जिसने मुझे जीवन दिया”
जिसने मुझे जीना सिखाया,
उसे काट रहे हो।
उसे मरते देख तुम”कैसे दर्द बांट रहे हो”
इसकी भी विश्वास स्थल से,
बेबस उठ रही है।।
बिन गोली तलवार बिना कमर टूट रही है।
भारत के कोने -कोने में हहकार मच रही है ।।
भगवान सबको एक बनाया,
इसमें क्या अंतर है।
“दहेज प्रथा जैसे नाच रहा है”
लगता है जादू मंतर है।।
“बेटी जैसी लक्ष्मी की”
दामन टूट रही है।।
बिन गोली तलवार बिना कमर टूट रही है ।
भारत के कोने -कोने में हहकार मच रही है।।


जयकृष्ण पासवान स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा बाराहाट बांका

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