काश वो बचपन लौट आए -संजय कुमार

Sanjay Kumar

काश,वो बचपन लौट आये,
वो बचपन की भोली शरारत।
वो बादलों को छूने की चाहत,
तितलियों के पीछे भागना
सपनों की दुनिया में जागना।
वो नन्ही परियों की कहानी।
अपनी दिनभर की मनमानी,
रूठने पर घरवाले तुरंत मनाए
काश,वो बचपन लौट आए।

जिंदगी की भागदौड़ न थी
जिम्मेदारियों की बोझ न थी,
न थी बड़ा बनने की लालसा
अब उन स्वर्णिम यादों से ही,
हम मन अपना बहलाये
काश,वो बचपन लौट आये।

फिर से छोटा बन जाऊं मैं,
दुनिया की परवाह न थी।
वो गुड़ियों की शादी कराना,
सब सुख अपने पास में थी।
कागज़ की नाव पानी में तैराना,
वो गलियों में कंचे खेलना
कटी पतंग के पीछे भागना।
कभी न कोई बात छुपाए
काश,वो बचपन लौट आए।।

पेट दर्द का करके बहाना,
कभी-कभी स्कूल न जाना।
छतरी रहते हुए भीग जाना,
वो बचपन का मौसम सुहाना।
चलो हम फिर से वहीं खो जाए
काश,वो बचपन फिर लौट आए।।

मिट्टी के खिलौने बनाना,
फिर तोड़ उसे मिट्टी में मिलाना।
दोस्तों को भी खूब चिढ़ाना,
शिकायत आने पर,कहीं छुप जाना।
पकड़े जाने पर घरवाले,दिन में ही तारे दिखाए,
काश,वो बचपन लौट आए।

स्वरचित मौलिक रचना
संजय कुमार (अध्यापक )
इंटरस्तरीय गणपत सिंह उच्च विद्यालय,कहलगाँव
भागलपुर ( बिहार )

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