स्नेह -जयकृष्ण पासवान

Jaykrishna

हर रंग- रंग के अंग -अंग में,
पावन रस भर जाता है।
खुशियों की तू इत्र है मानो,
रोम-रोम महक जाता है ।।
दरिया के हर बूंद- बूंद में,
प्रेम सुधा वर्षाता है ।
मन आंचल की कुंजी बनकर,
हृदय के संग इतराता है ।।
हर रंग- रंग के अंग -अंग में,
पावन रस भर जाता है।
खुशियों की तू इत्र है मानो, रोम -रोम महक जाता है ।।
“फिजाओं के संग महकती- हर वादियों में ”
हर डाल और पात सुगंधित हो जाता है ।
“नदी पहाड़ की तू ज़हीर है- मानो ”
तेरी हर एक मुस्कान से- लहराता है ।।
हर रंग- रंग के अंग- अंग में-
पावन रस………………..।।
मिट्टी के हर कण-कण में,
दया की करुणा मंडराता है।
“पाणी तेरा जम़जम़ है मानो”
दानी -कर्ण कहलाता है ।।
“पायल के हर झंकार में”
संगीत के सुर लहराता है ।
मेरा कंठ का राग है जानो,
मधुर तरन्नुम में वह जाता है।।
हर रंग -रंग के अंग -अंग में,
पावन रस भर जाता है।
खुशियों की तू इत्र है मानो रोम -रोम महक जाता है।।


जयकृष्ण पासवान स०शिक्षक उच्च विद्यालय बभनगामा, बाराहाट (बांका)

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