मैं हिन्दी हूँ-स्वाति सौरभ

मैं हिन्दी हूँ

मैं हिन्दी हूँ,
थोड़ी घबराई हुई-सी हूँ।
अपने अस्तित्व के खो जाने के डर से।
कहीं मैं भी सिर्फ किताबों की,
भाषा बनकर ही ना रह जाऊँ।
संस्कृत भाषा की तरह
स्कूलों में सिर्फ ना पढ़ाई जाऊँ।
जिस तरह से अंग्रेज़ी को भाव दिया जा रहा है,
हिंदी बोलने पर अपमानित महसूस किया जा रहा है।
मुझे बोलने में लोग शरमाते हैं,
जब अंग्रेजी को मेरे सामने पाते हैं।
अंग्रेज़ी बोलने पर गौरवान्वित महसूस करते हैं
और मुझे बोलने पर शर्मिंदगी!

मैं राष्ट्रभाषा हिन्दी हूँ,
मैं जन-जन की भाषा हूँ।
मैं खुशी बयां करने की जरिया हूँ,
किसी के दर्द में आँखों से निकली दरिया हूँ।
मैं वही हिंदी हूँ,
जो अग्रेजों के खिलाफ,
लड़ी आजादी की लड़ाई।
आजाद हो गई अंग्रेजों से,
अंग्रेजी से न हो पाई।

न सस्ती हो अंग्रेज़ी की पढ़ाई कभी
अमीरों की न सही
गरीबों की भाषा बनकर तो रहूँगी कहीं
वरना खो ना दूं अपना अस्तित्व कहीं।
न खो देना कहीं मुझे झूठे अभिमान में
जिंदा रखना हमेशा मुझे अपने स्वाभिमान में।
मैं हिंदुस्तान की पहचान हिंदी हूँ
मैं हिंदुस्तान की आवाज़ हिंदी हूँ।
मैं राष्ट्र की माता हिंदी हूँ,
मैं राष्ट्र का धरोहर हिंदी हूँ।

स्वाति सौरभ
स्वरचित एवं मौलिक
आदर्श मध्य विद्यायल मीरगंज,
आरा नगर, भोजपुर

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