वर्षा-रानी कुमारी

वर्षा

तपी हुई थी धरती, गर्मी के प्रकोप से
चुपके-चुपके एक बूँद गिरी बादलों के ओट से
पंछी चहके, धरती महके, सौंधी-सौंधी खुशबू लाई
वर्षा आई, वर्षा आई
वर्षा है ऋतुओं की रानी,
करती रहती हरदम मनमानी
वर्षा रानी बरसाए पानी
खेतों में हरियाली और खुशहाली छाई
वर्षा आई, वर्षा आई
वृक्ष करते हैं स्वागत वर्षा का गाकर राग मल्हार
मोर नाचते झूम-झूम कर सुन्दर पंख पसार
गूँज रहीं हैं सभी दिशाएँ, है प्रकृति की छवि निराली
चारों ओर बहार है छाई
वर्षा आई, वर्षा आई
पेड़ों से होती है वर्षा बात सभी ने मानी
पेड़ यदि सब खत्म हो जाए तब फिर क्या
होगा, सोचो फिर क्या होगा
जब रूठ जाएगी हमसे वर्षा रानी
न आएगी वर्षा रानी न बरसेगा पानी
मर जाएगें प्राणी सारे, हो जाएगी धरती बंजर
है अगर धरती को समृध्द और खुशहाल बनाना
आओ मिलकर प्रण लें हम सबको है पेड़ लगाना
वनों की न करेंगे कटाई, झूम-झूमकर वर्षा आएगी,
तब फिर कहेंगे हम सब मिलकर बहन और भाई
वर्षा आई, वर्षा आई ।

रानी कुमारी

NPS हैवतपुर, बाराहाट, बाँका

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