दोहावली – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

Devkant

हिंदी अमरतरंगिनी, जन-जन की है आस।
सच्चे उर जो मानते, रहती उनके पास।।

हिंदी भाषा है मधुर, देती सौम्य मिठास।
शब्द-शब्द से प्रीति का, छलक रहा उल्लास।।

जन-जन की भाषा सुघर, सरस अलंकृत भाव।
शब्द व्यंजना है अमित, करिए अंतस चाव।।

हो हिंदी का देश में, सम्यक सही प्रचार।
तभी गर्व से कह सकूँ, स्वप्न हुआ साकार।।

हर दिन हिंदी से करें, अंतर्मन से प्यार।
रस अनुप्राणित भाव है, सुभग शब्द भंडार।।

रोटी खाएंँ हिंद की, बसे हिंद का भाव।
निज भाषा का मान हो, हिंदी से हो चाव।।

बिंदी है यह हिंद की, हो न कभी अपमान।
जैसे शोभित भाल पर, वैसे रखना ध्यान।।

निज भाषा से नेह रख, अपनी संस्कृति जान।
हिंदी से ही हिंद है, सदा बढ़ाएँ मान।।

हिंदी भाषा में छुपा, दुनिया का सब ज्ञान।
यही भाल की है बिंदी, करिए नित सम्मान।।

हिंदी सबकी शान है, सभी करें सम्मान।
भाषा प्यारी है सुघर, सरल सुगम गुण खान।।

देव कांत मिश्र ‘दिव्य’ मध्य विद्यालय धवलपुरा, सुलतानगंज, भागलपुर, बिहार

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