माँ – रत्ना प्रिया

Ratna Priya

माँ
माँ,
पास बैठो न,
ममता भरी गोद में,
वात्सल्य की मोद में ,
सुख-शांति का अनुभव
करने दो न ।

माँ,
बड़ी भूख लगी है,
अपने पास बिठाओ न,
नरम हाथों से
गरम रोटियाँ
सेंक कर खिलाओ न ।

माँ,
तू बड़ी भोरी है,
यशोदा मैया मोरी है,
थोड़ी शरारत,थोड़ी चपलता,
थोड़ी हँसी,थोड़ी ठिठोली
बेफिक्र बचपन जीने दो न ।

माँ,
बचपन बीत गया,
समय रीत गया,
तेरे भरपूर दुलार का
स्नेहिल स्पर्श व प्यार का,
फिर से अहसास कराओ न ।

माँ,
लोंगों के कठोर व्यवहार से,
चोटिल व्यंग्य के प्रहार से,
मैं व्यथित हो चुका हूँ,
अपने स्नेह के धागों से
टूटे ह्रदय को सिल दो न ।

माँ,
तूने मुझे बड़ा किया है,
अपने पैरों पर खड़ा किया है
अपना कर्तव्य बखूबी निभाऊँ,
अपने पग से डिग न पाऊँ,
कर भरके आशीष दो न ।

माँ,
दिया है तूने
सदा दिया है,
तेरे ऋण को गिना सकूँ मैं,
ऐसा यंत्र बना सकूँ मैं ,
इस अमोल प्यार का मोल बताओ न ।

माँ,
तू चुप है, शांत है,
गम्भीर है, नि:शब्द है,
तू ममता की मूरत है,
पर, तुझे आज मेरी जरुरत है
मेरा नाम लेके पुकारो न ।

माँ,
आज, ध्यान से तुझे देखा है,
मानो, तू मुझे पास रखना चाहती है,
पर, मेरी जिम्मेदारियों के कारण
कुछ कह नहीं पाती है
अपना अधिकार दिखाओ न ।

माँ,
कल, तेरे त्याग के आगे
मैं अबोध और अनजान था,
आज बेबस और लाचार हूँ,
तेरा चिर संगी बनने का
कोई उपाय बताओ न ।

रत्ना प्रिया
शिक्षिका (11 – 12)
उच्च माध्यमिक विद्यालय माधोपुर
चंडी ,नालंदा

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