भारत गाथा – मधु कुमारी

Madhu

धन्य हुई धरा बसंती महक उठी है अब सारी गलियाँ

खिल गई चहुँ ओर, स्वतंत्रता की देखो नव कलियाँ।

धन्य थी वो पावन बेला, थे धन्य वो पल-क्षण, वो घड़ियाँ

जिनमें हुई स्वतंत्र और खुली भारत माँ के पैरों की बेड़ियाँ।

सत्य अहिंसा के बल पर देखी हमने ये शुभ घड़ियाँ,

आजादी के मतवालों ने थी पहनी जब हथकड़ियाँ।

कवियों ने तब वीर रस की गूँथी थी सुंदर लड़ियाँ,

आजादी के रक्तपान से झूम उठी थीं तब अल्हड़ नदियाँ।

जहाँ आसमां भी अदब से चूमा करते हैं पर्वत की चोटियाँ

और जहाँ खेतों में है लहराती, गेहूँ की सुनहरी बालियाँ।

है जहाँ स्वयं प्रभु रास रचाते और नाच उठती तब गोपियाँ

और जहाँ कोयल की कु कू, मीठी होती तोते की बोलियाँ।

हैं ऐसे भारत के हम सपूत, जो रचते नित वीरता की कहानियाँ

है हमें प्राणों से भी प्रिय भारत व भारत की अदभुत निशानियाँ।

है चाह, कर दूँ न्यौछावर देश पर, बन जवान अपनी जवानियाँ

एक बार नहीं सौ बार दे दूँ , देश की खातिर अपनी कुर्बानियाँ।

ऐसे ही कुछ आज़ादी के सपने सजाते हैं, हम भारत की बेटियाँ

देश पर खुद को कर न्यौछावर बन जाऊँ शहीदों की अमर कहानियाँ।

मधु कुमारी

उ० म० वि० भतौरिया

कटिहार

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