भाई का पैगाम- विवेक कुमार

Vivek

रक्षाबंधन पर,

भाई का पैगाम,

सभी बहनों के नाम,

ओ मेरी बहना,

राखी तू जरूर बाँधना,

रक्षा का मैं वचन भी दूँगा,

मगर

इस कलयुग में,

राक्षसी प्रवृत मानवों में,

आस-पास के,

गैर तो गैर अपने लोगों में,

कौन कैसा है? पहचानने में,

खा जाएगी तू धोखा,

गिरगिट की तरह रंग बदलती दुनिया में,

गुम हो जाएगी तुम्हारी पहचान,

सुन री बहना,

साये की तरह मेरा साथ नहीं,

इस बात का तूझे ख्याल है रखना,

मुझ पर निर्भर,

मत रह ये बहना,

तुम ही हो घर का गहना,

सुन तू,

नाजों से पली,

तू कोमल-सी कली,

हैवानों की नज़र,

तुझ पर पता नहीं,

कब से हो गड़ी,

रुक,

इस मिथ्या को तोड़,

रिश्तों के बंधन छोड़,

नियत अब,

तू पहचाना सीख,

न माँग तू किसी से भीख,

समाज में छवि,

दया कोमलता की प्रतिमूर्ति,

ममता की जो करती है पूर्ति,

समय आने पर,

तू ही चंडी तू काली है,

जग की करती रखवाली है,

निर्भया बनो,

उठो जागो और याद कर,

अपनी शक्ति का संचार कर,

सृष्टि की,

जननी तू, पालक तू,

जीवन का आधार हो तू,

फिर,

चंद वहशी से मत डर,

उठ! कर उनका प्रतिकार,

वचन,

आज रक्षाबंधन पर दो,

आत्मविश्वास खुद में ला दो,

तू,

अबला नहीं, तू सबला है,

कोमल नहीं तू कठोर है,

अब,

ना डर प्रतिकार कर,

खुद की रक्षा स्वयं कर।

लोगों की सोंच,

बदलेगी आएगी वो सुबह,

हाथ लगाते होंगे वो तबाह,

सनक ऐसी पाल,

अच्छों के लिए अच्छा,

बुरों के लिए काल बन,

फिर कोई तुझे,

छूने से भी घबराएगा,

सपना मेरा साकार हो जायेगा,

अब,

भाई की न करना फरियाद,

तू ही है मेरी बहना फौलाद।

विवेक कुमार

भोला सिंह उच्च माध्यमिक विद्यालय,

पुरुषोत्तमपुर

कुढ़नी, मुजफ्फरपुर

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