पालक रक्षक प्रभु श्रीकृष्ण- अमरनाथ त्रिवेदी

Amarnath Trivedi

तुम गीता के उपदेशक जग में,

तुम नंद के राज दुलारे हो।

तुम द्वारकाधीश बने प्रभु ,

तुम वसुदेव पुत्र प्यारे हो।।

जितने तुम माँ देवकी के प्यारे ,

यशोदा के भी राज दुलारे हो।

रास रचाते राधा के संग ,

रुक्मणि के भी प्यारे हो।।

दुष्ट कंस , पूतना के तारक ,

और तारक लाखों भक्तन के।

विराट रूप दिखाया भरी सभा में,

लगा अभिशाप दुर्योधन को।।

उठा विशाल गोवर्धन पर्वत ,

देवराज इंद्र को भी ललकारा है।

अपने प्रियजन गोकुलवासी को ,

इंद्र के प्रकोप से उबारा है।।

भक्त के लिए प्रभु कुछ भी करते,

महाभारत में यह लेखा है।

जहाँ भक्त को जरूरत प्रभु की,

वहीं विराट रूप में देखा है।।

जब भरी सभा में दुशासन ने,

द्रौपदी का चीरहरण करना चाहा।

तब आर्त्त पुकार सुन नारी का ,

प्रभु ने दुःशासन की शक्ति थाहा।।

चीर बढ़ाकर प्रभु ने उस क्षण ,

दुःखी द्रौपदी का उद्धार किया।

दुर्योधन की पापी मंशा को ,

सच में चकनाचूर किया।।

कृष्ण हैं तेरे नाम जगत में ,

तुम भक्तन के अति प्यारे हो।

अर्जुन का सारथी बनकर प्रभु ,

तुम उनके प्राण उबारे हो।।

पांडव के तुम प्यारे बन ,

न्याय मार्ग प्रशस्त किया।

अपने प्रिय अर्जुन को बचाने ,

अपना वादा भी निरस्त किया।।

सुदामा से कृष्ण की दोस्ती ,

सचमुच में बहुत आला था।

जब मिले कृष्ण सुदामा से ,

वह दृश्य बड़ा निराला था।।

अपने प्रिय सखा को प्रभु ने,

बड़ा आदर सत्कार किया।

परोक्ष में अपार वैभव दे ,

सुदामा का उद्धार किया।।

सुंदर उपदेश गीता का दे ,

जग को अनुपम ज्ञान दिया।

भक्त के दिल में बसे भय को,

तत्क्षण ही भयमुक्त किया।।

आस लगी है प्रभु जी तुमसे ,

न कभी भक्तन को बिसराओगे।

उसकी आर्त्त पुकार तुरंत सुन ,

प्रभुजी दौड़े तुम चले आओगे।।

यही हमारी विनती प्रभु से ,

यही आस हमारी है।

सारे जग का तू रखवाला,

तेरी दया दृष्टि अति न्यारी है।।

रचयिता:
अमरनाथ त्रिवेदी
पूर्व प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित उच्चतर विद्यालय बैंगरा
प्रखंड- बंदरा, जिला- मुजफ्फरपुर

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