हे मुरारी! अब लाज बचाओ- विवेक कुमार

Vivek Kumar

हे मुरारी! अब लाज बचाओ

ये कैसी विपदा आन पड़ी,

चहुंँओर अंधियारा छाया है,

अपने ही बने भक्षकगण से,

हे मुरारी! अब लाज बचाओ।

सृष्टि की जननी का मान नहीं,

जहांँ नारी का सम्मान नहीं,

ऐसे हैवानों से हर नारी की,

हे मुरारी! अब लाज बचाओ।

हे सृष्टि के पालन- हार,

अब तेरा ही बस सहारा है,

गिद्धों की गंदी नजरों से,

हे मुरारी! अब लाज बचाओ।

आतताइयों से भरी महफिल में,

दौपदी की लाज बचाने,

जिस तरह तुम आए थे,

हे मुरारी! सब की लाज बचाओ।

ऐसी घृणित सोंच मिटाने,

सबके दिल को सात्विक बनाने,

मात्र तेरा ही एक सहारा है,

हे मुरारी! अब लाज बचाओ।

जग की विनती सुनकर,

हर नारी की पुकार पर,

एक बार फिर आ जाओ,

हे मुरारी! अब लाज बचाओ।

विवेक कुमार

भोला सिंह उच्च माध्यमिक विद्यालय,

पुरुषोत्तमपुर

कुढ़नी, मुजफ्फरपुर

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