गीत- डॉ. स्वाराक्षी स्वरा

Dr Swarakshi swara

जीना है दुश्वार यहाँ अब, जीना है दुश्वार

नाव फँसी है बीच भँवर में,

कृष्ण लगा दो पार।

मन की चिड़ियाँ ने सोचा था, पंख पसारूँगी।

नील गगन जा इंद्रधनुष के रँग उतारूँगी।।

ठोकर खा कर टूटी पाँखें,

हुए सपने गर्द-गुबार।

जीना है…….।

मन की व्यथाएँ किसको कह दूँ किसका दूँ मैं साथ।

अविश्वासी सारा जग है, बिगड़े हैं हालात।।

व्याकुल हैं हृदय की गलियाँ,

पीड़ा मन में अपार।

जीना है……।।

सारे सपने, सारे रिश्ते-नाते सब हैं झूठ।

स्वार्थ के कारण प्यार है मिलता, वरना जाए रूठ।।

अपने तो अपना कह-कह कर,

लूटते हैं हर बार।

जीना है ……..।।

डॉ स्वराक्षी स्वरा

खगड़िया बिहार

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