गोरैया की आत्म व्यथा-अपराजिता कुमारी

Aprajita

गौरैया की आत्मव्यथा

मैं हूँ चुलबुली सी गौरैया
स्थिर नहीं मैं रह पाती हूंँ,
चहक चहक कर फुदक फुदक कर
परिस्थितियों के अनुकूल ढल जाती हूँ।

मैं हूँ चुलबुली सी राजकीय पक्षी
दिल्ली की भी, बिहार की भी
भारत ही नहीं, ब्रिटेन, इटली, फ्रांस,
जर्मनी
विदेशों में भी घट रही है, संख्या मेरी।

मेरी सी है छ: प्रजातियाँ दुनियाँ भर में हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंध स्पैरो डेड सी या अफगान स्क्रब स्पैरो, टि् स्पैरो या यूरेशिया स्पैरो और रसेट या सिनेमन स्पैरो।

मैं हूँ चुलबुली सी घरेलू चिड़िया
पसंद मुझे साथ इंसानों का,
गांव, घरों, जंगलों में 30% ही बच पाई
शहरों महानगरों में कहाँ नजर आ पाती हूँ।

मैं हूँ चुलबुली सी बड़ी सजीली
पसंद मुझे है धूल स्नान
शाम होते तश्तरी नूमा गड्ढे में
फुदक फुदक कर करती धूल स्नान
पर कंक्रीट के जंगलों में स्नान कहां कर पाती हूँ।

मैं हूँ चुलबुली सी गौरिया
85% तक घट गई संख्या मेरी,
20 मीटर तक ही तो उड़ पाती हूँ
बहुमंजिला इमारत में घर कहाँ बना पाती हूँ,
मोबाइल टावरों के विकिरण घटा रहे प्रजनन क्षमता मेरी,
इसके विकिरण से दिशा भ्रम की शिकार हो जाती हूँ।

मैं हूँ चुलबुली सी गौरैया,
मेरी घटती संख्या से विश्व भी है हैरान
चला रहा “हेल्प हाउस स्पैरो” अभियान
मैं भी तो हूँ प्रकृति का वरदान
मुझे भी तो दे दो जीवन दान
पुनः मुझे बसाओ, पुनः मैं गुंजाऊँगी
अपनी चहचहाहटोंं से
तुम्हारी सुबह और शाम।

अपराजिता कुमारी

राजकीय उत्क्रमित मध्य विद्यालय जिगना जगरनाथ हथुआ गोपालगंज

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