मैं शिक्षक हूँ-स्नेहलता द्विवेदी ‘आर्या’

मैं शिक्षक हूँ

मैनें तो सूरज चाँद रचा,
इस जीवन का सम्मान रचा,
नव अंकुर नव कोपलों में,
रच बस कर जीवन मान रचा।

खुद जलकर तपकर सींच रहा,
खुद हविषा यज्ञ समीप रहा,
इस सगुन में सबकुछ सिक्त रहा,
मृदु जीवन का संगीत रहा।

इस धरा में मानुज मुझसे है,
सब ज्ञान व तृष्णा मुझसे है,
सम्यक विवेक भी मुझसे है,
राज्याभिषेक भी मुझसे है।

तुम राजा हो तो मुझको क्या है,
तुम राजधर्म का मान रखो।
तुम चढ़ो स्वर्णिम शिखरों पर,
पर मानवता का ध्यान रखो।

मैं शिक्षक हूँ, मर्यादा हूँ,
चर चर में बसता ज्ञाता हूँ,
मैं सब में बसता साधक हूँ,
मैं तो बस सीधा सादा हूँ।

मैं ना हूँ अब यह ध्यान करो,
कुछ तो अब नया विधान करो,
मानव के मानव होने का,
इस वसुधा पर एलान करो।

मेरे बिन पशुता जीवन है,
चिंतन चितवन सब क्रंदन है,
अवनी पर जीवन तम सम है,
यह राज न है साम्राज्य न है।

मानव में मानव गढ़ता मैं,
पशुता को हूँ हरता मैं,
सब में सम्यक ही भरता मैं,
मधुवन अनंत हूँ गढ़ता मैं।

फिर छल क्यों मेरे साथ हुआ,
मेरा ही क्यों प्रतिकार हुआ,
जीवन की कठिन परीक्षा में,
संसाधन का नित ह्रास हुआ।

मैं रुका नहीं मैं झुका नहीं,
मैं तो इक पल भी थका नहीं,
यह धर्मयुद्ध है व्यथा नहीं,
मैं शिक्षक मार्ग से हटा नहीं।

स्नेहलता द्विवेदी “आर्या “
मध्य विद्यालय शरीफगंज, कटिहार

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