प्रदूषण और उसके प्रकार-सुधीर कुमार

प्रदूषण और उसके प्रकार

उपयोग लायक न रह जाता
न मानव का आ सकता काम।
किसी चीज के गंदे होने
का ही तो प्रदूषण है नाम।
चार तरह के होते हैं
ये गंदगी और प्रदूषण।
वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण,
ध्वनि प्रदूषण और भूमि प्रदूषण।
हवा है जब गंदी होती
तो वायु प्रदूषण है कहलाता।
सांस रोग और हृदय रोग
दोनों को ये है बढ़ा जाता।
कल कारखाने व गाड़ी, बसों के
गंदे धुएं निकलने से।
होता है यह वायु प्रदूषण
आबादी के भी बढ़ने से।
इसे रोकने हेतु हम सभी
पेड़ पौधे को लगायेंगे।
गाड़ी का उपयोग कम करें
फैक्ट्री दूर लगायेंगे।
जब जल गंदा हो जाता
तो जल प्रदूषण है कहलाता।
डायरिया, हैजा जैसै
रोगों को ये फैला जाता।
नदी तालाबों और समुद्र में
कूड़ा कचरा बहाने से।
जल प्रदूषित है हो जाता
पशुओं को इनमें नहलाने से।
नदी किनारे मल, मूत्र का
कभी नहीं हम त्याग करें।
कूड़े कचरे नहीं बहाकर
रोकने में संभाग करें।
मिश्रित, तेज ध्वनि सुन ले तो
ध्वनि प्रदूषण है कहलाता।
कानों को अप्रिय है लगता
दिल की गति बढ़ा जाता।
शोर शराबा करने से
व तेज आवाज को सुनने से।
ध्वनि प्रदूषित है हो जाता
गाड़ी के भोंपू बजने से।
तेज आवाज में लाउड स्पीकर
कभी नहीं बजायें हम।
इसे रोक पायेंगे तब जब
भोंपू बजायें कम से कम।
मिट्टी के गंदे होने का
नाम है होता भूमि प्रदूषण।
पेड़ पौधे और सूक्ष्मजीव का
दुश्मन होते ये दूषण।
खाद उर्वरक और रसायन के
उपयोग से यह है हो जाता।
मिट्टी की शक्ति है घटती
और किसान भी है रोता।
इससे बचने की खातिर
उर्वरक, केमिकल न डालें।
उपयोग करें उस गोबर का
जिस पशु को हमने हैं पाले।

सुधीर कुमार

म. वि. शीशागाछी
टेढ़ागाछ  किशनगंज

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