मां सृष्टिकर्तृ-सुरेश कुमार गौरव

Suresh kumar

मां सृष्टिकर्तृ 

मां! यानी सृष्टिकर्त्तृ
स्त्री का महान दातृ रुप
इस नाम की सार्थकता
सबला शक्तिरुपा में
सदा परिलक्षित दिखती है।

वात्सल्य भाव प्रेषित कर
जीवन रुपी पात्रों में
ममता, दया, करुणा के
प्रगति वाहक रुप धरती हैं।

स्नेह पैदा कर बाल मन में
ऊर्जा, स्फूर्ति प्रस्फुटित कर
इनके तन-मन और कर्मों के
नवजीवन में नया रंग भरती हैं।

प्रेम का अथाह सागर बन
रिश्तों की गहराई में उतर
अपनापन और विश्वास के
अटूट और गहरी नींव डालती हैं।

मानव के उत्श्रृंखल रुपों को
अपनी धैर्य और कृपा-दया से
उन पात्रों में असीम श्रद्धा के
सार्थक रुप प्रेषित करती हैं।

नए मान-प्रतिमान स्थापित कर
मानव प्रेम-सुधा बरसा कर
धरती पर सदैव कर्मरत श्रद्धा के
सदा की भांति सामिप्य में रहती हैं।

फिर किसने दिया इन्हें
अबला-निर्बला सा शक्तहीन नाम?
भौतिक और सांसारिक कार्यरुपों में
शक्तिरुपा तो बलहीन किसने बताया?
ये तो सदा स्त्री नाम सार्थक करती हैं।

स्वरचित मौलिक कविता
सुरेश कुमार गौरव ✍️
@ सर्वाधिकार सुरक्षित

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