मैं और मेरे मित्र-शशिधर उज्ज्वल

sashidhar ujjwal

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मैं और मेरे मित्र

एक मित्र बोले- “शशिधर”
तुम किस चक्की के खाते हो?
इस महंगाई के आलम में भी,
कद क्यों बढ़ाए जाते हो?

मैंने बोला-
“क्या रखा है कद बढ़ाने में?”
मनहूस अक़्ल से काम करो,
कोरोना काल का युग है मित्रों,
घर बैठे जगत में नाम करो।

मित्र बोला-
बस करो “रहने दो लेक्चर”,
पुरखों को मत बदनाम करो,
तुम भारत के अच्छे शिक्षक,
राष्ट्र का निर्माण करो।

राधाकृष्णन, कलाम को देखो,
सीखो कुछ उनसे, कुछ काम करो,
घर बैठे डिंग हाँकते हो,
चलो उठो, अब नाम करो।

मैंने बोला-
मैं औरों की तो नहीं बात,
पहले अपनी ही लेता हूँ,
आराम अमृत की वह बूंद है,
जिससे तन दुबला कर लेता हूँ।

क्या रखा है मोटा होने में,
व्यर्थ अनाज खपत होती है,
बुद्धि भी धक-पक करती है,
तो ‘कविता’ उमड़ पड़ती है,

इसलिए तो कहता हूँ,
तुम घर में बहुत उत्पात करो,
अपने घर में बैठे-बैठे,
बस लंबी चौड़ी बात करो,

 

 

शशिधर उज्ज्वल

 

 

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