मित्रता-दिलीप कुमार गुप्ता

मित्रता 

मित्र संग बंधी जीवन की डोर
विश्वास भरा इक स्वर्णिम भोर
धूप छांव मे हाथ बंटाये
सखा सखा के काम जो आए
इससे जीवन मे जागृत स्फूरणा
मिटे क्लेश दुर्भाव वासना
मैत्री परमपिता का वरदान
बच्चों रखना नित इसका ध्यान ।

मित्र पर सर्वस्व उढेलना
प्रति पल जीवन संवारना
बहके कदम उनके रोकना
भले ही कोप भाजन हो बनना
त्याग समर्पण सद्भाव बढाना
पल पल उनका सम्मान करना
मैत्री परमात्मा का अभयदान
बच्चों रखना नित इसका ध्यान ।

मैत्री जीवन की है सफलता
इनसे सुगंधित है मानवता
आर्य परम्परा का हो यशोगान
कृष्ण सुदामा का गुणगान
नाक नयन ओछी बात न करना
भुख्खर पहलवान कभी न कहना
शब्द समाहित भाव निःसृत
भाव से संस्कार झंकृत
मैत्री ईश्वर का सम्मान
बच्चों रखना नित इसका ध्यान ।

मैत्री जीवन की है उपयोगिता
इनसे सुरभित है सामाजिकता
मर्यादित मैत्री है ग्रहण मुक्त
जीवन इनसे स्वर्ण सुगंधित
अमर्यादित मैत्री निंदनीय है
आत्मिक मैत्री वंदनीय है
मैत्री सर्वेश्वर का है आशीर्वचन
बच्चों रखना नित इसका ध्यान ।

दिलीप कुमार गुप्ता
प्रधानाध्यापक म. वि. कुआड़ी अररिया

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