राखी-गिरिधर कुमार

Giridhar

Giridhar

स्नेहसिक्त
प्रेम अमोल
यह बन्धन प्यारा
बस अनमोल

भीगी आंखें हैं
बहना की
भाई मूक विह्वल है
यह पावन पुनीत पूजा है
इस रिश्ते से
धरती धवल है

इस युग में भी
यह भाव प्रबल
शाश्वत है
अटूट है
भाई बहन की
प्रेम डोर यह
अविचल है
दिव्य है

बोलो बहना
तुम क्या लोगी
भला कैसे यह मोल चुके
कैसे कोई
प्रतिदान गहे कुछ
कलाई पर जब
अम्बर सजे…!

क्या दोगे भईया बोलो
क्या मांगेगी
बहना भला
यह स्वर रहित
संकल्पसिक्त
यह पल है सच में
बहुत बड़ा!!

स्नेहसिक्त
प्रेम अमोल
यह बन्धन
सच में प्यारा है
देखो कितना सजता है
रंग इसका कितना न्यारा है!

गिरिधर कुमार

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