फूल – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

लगते कितने पुष्प अभिराम गहरा चिंतन कर लो मानव। फूलों-सा नित बनिए ललाम करो नष्ट मत बनकर दानव।। फूल प्रकृति का अनुपम उपहार गुण सुरभित पा हंँसते रहिए। करिए जीवन…

श्रावण- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

शुचि मन-भावन श्रावण आया आगत को लख हों पुलकित मन। अम्बर बादल चहुँदिशि छाया। दृश्य मनोहर बरसा-सावन।। कृषक मुदित मन गीत सुनाते रिम-झिम बूँदें हैं हर्षाती। सुमन विटप मन को…

दोहा – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

दीप जलाकर ज्ञान का, करिए गुरु का गान। चरण शरण रहकर सदा, तजिए निज अभिमान।। गुरुवर प्रतिदिन शिष्य को, देते नैतिक ज्ञान। मन वचनों से कर्म से, करें नित्य सम्मान।।…

बरसात – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

काली घटा व्योम में छाई दृश्य देख मन मुदित कीजिए। हँसती हुई बरसात आई हस्त उठाकर तोय पीजिए।। वर्षा देखो जब-जब आती जीव-जंतु हर्षित हो जाते। हरियाली चहुँदिशि छा जाती…

प्राची की लाली – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

प्राची की सुंदर छवि लाली सबको नित संदेश सुनाती। जगो-उठो दो-पा खुशहाली पुरखों से पाई यह थाती।। रश्मि सूर्य की प्रतिदिन कहती शीघ्र जगें यदि कुछ है पाना। धरती चुप…

दोहा – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

रिश्ता हो कायम सदा, भरते रहें मिठास। अपनेपन का भाव रख, करिए सुखद उजास।। ईश-याचना नित करें, रखें न कपट विचार। निर्मल मन की भावना, देती खुशी अपार।। संधिकाल के…

दोहा – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

भूप जनक के बाग में, आए राजकुमार। दिव्य मनोहर वृक्ष से, मुग्ध नयन अभिसार।। नव किसलय नव पुष्प से, हर्षित पुष्पित बाग। कीर मोर के मध्य में,कोयल छेड़े राग।। ताल…

कुंडलिया- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

माता की आराधना, करो सदा प्रणिपात। अंतर्मन के भाव में, भरो नहीं आघात।। भरो नहीं आघात, कर्म को सुंदर करना। मन की सुनो पुकार, पाप को वश में रखना। पढ़कर…

मनहरण घनाक्षरी- देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

वृक्ष पुत्र के समान, रखें सभी नित्य ध्यान, शुद्ध वायु प्राप्त होती, बड़े-बड़े काम हैं। पत्ते हैं गुणकारक, छाया तो शांतिदायक , फूल हैं मनमोहक, सुखद ललाम हैं। देवों के…

मनहरण घनाक्षरी – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

शाक्य वंश जन्म लिए, सत्य धर्म भाव किए, तथागत बुद्ध हुए, कृतियाँ महान हैं। राजपाट त्याग कर, मूल कर्म झोली भर, ज्ञान बोधि वृक्ष पाए, दया के निधान हैं। जीव-…