वन गमन – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति

वन गमन (तंत्री छंद) जनक दुलारी, हे सुकुमारी, कैसे तुम,वन को जाओगी। पंथ कटीले,अहि जहरीले, कैसे तुम,रैन बिताओगी।। सुन प्रिय सीते, हे मनमीते, आप वहाँ,रह ना पाओगी। विटप सघन है,दुलभ…

मेघा रे- कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”

आ जाओ रे मेघ, इतना मत न इतराओ। उजड़ रहा खलिहान,थोड़ा नीर बरसाओ।। हैं बहुत परेशान,तप रही धरा हमारी। कृपा करो भगवान,हरी भरी रहे क्यारी।। पशु-पाखी बेचैन,सूखे कंठ तड़प रहें।।…

मेरा गॉंव – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति

आइए मेरे गाँव में, अजी बैठिए छांव में, प्रकृति के नजारे को, समीप से देखिए। समृद्ध खलिहान है, मेहनती किसान हैं, ताजे-ताजे उपज का, आंनद तो लीजिए। कोलाहल से दूर…

पिता – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”

पितृ दिवस पर आज सभी, करते पितृ को याद। पाकर आशीष पितृ से,होते खुश औलाद।। मात-पिता के स्थान का,करता जो नित ध्यान। बिन पोथी के ज्ञान ही,मिलता उसे सम्मान।। रहता…

अमरों में नाम लिखा लेना – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति

चलते-चलते गर पग दुख जाय बैठ थोड़ा सुस्ता लेना। मगर धैर्य खोकर कभी तुम पग को पीछे ना हटा लेना। बढ़ जाय जो कभी असमंजस तो प्रभु का ध्यान लगा…

संघर्षों का आगाज करो – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”

व्यर्थ की बातों में उलझकर, मत वक्त अपना बर्बाद करो। इक-इक पल है कीमती जानो, स्वयं से तुम संवाद करो।। करना है जो लक्ष्य सिद्धि तो, हाथ पर हाथ धरे…

मतदान अवश्य कीजिए – कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”

लोकतंत्र का पावन पर्व, राय अपनी दीजिए। राष्ट्रहित में अवश्य अपना,अंश निश्चित कीजिए। बनिए मत सिर्फ मूक दर्शक, फैसला अब लीजिए। काम करें जो राष्ट्रहित में,मत उसे ही दीजिए।। किन्हीं…

आदिशक्ति मात भवानी- कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’

आदिशक्ति हे मात भवानी , आप हैं मातु जग कल्याणी। हम आए माँ द्वार तुम्हारे, दूर करो माँ कष्ट हमारे। ज्ञान का मात ज्योत जला दो, मन से सारे बैर…

आओ मतदान करें- कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”

देश की आजादी को अगर अक्षुण्ण बनाए रखना है। तो सोच-समझ व जाँच-परखकर नेता को हमें चुनना है।। अपनी पिछली पीढियों के त्यागों का मान यदि रखना है। तो उठो…

पुरुष- कुमकुम कुमारी “काव्याकृति”

यदि तुम विवेक सम्पन्न हो धर्म की वैज्ञानिकता को समझते हो अभ्युदय व निःश्रेयस की सिद्धि करते हो तो निश्चय ही तुम पुरुष हो… यदि तुम ऊर्ध्वगामी हो प्राकृतिक संपदा…