कलम! तू क्यों चुप है ? कुछ तो बोल । इंसानों की इंसानियत पर बोल , काबिलों की काबिलियत पर बोल । बोल हुनरबाजों का हुनर भी, और फिर, हैवानों…
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स्वरचित कविता का प्रकाशन
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