पिता
एक बरगद
एक असीम सा कुछ
वह खड़ा है
पार्श्व में
हम और हमारी छाया के
बीच कहीं…
ढूंढो न ढूंढो
उसे कोई मतलब नहीं
बस तुम्हारी समृद्धि
चाहिए उसे
वह बस एक छाँव है
वह बस एक इत्मीनान है
पिता!
उसकी लाड़ की तो छोड़ो
उसकी झिड़कियाँ भी
देती हैं प्रसन्नताएं
आत्मिक प्रशांति
और वह क्षुब्ध भी है
तो अधिकतर इसलिए
की उसे दुनिया की
अनगिन खुशियाँ चाहिए
हमारे लिए ही
तुम्हारे लिए ही…
पिता!
एक मूल
एक रास्ता
एक आश्वासन
एक प्रशस्ति
एक सम्पूर्ण प्रतिकृति
ईश्वर की
और जो सर्वथा बोधगम्य है
और जो सर्वथा प्रस्तुत है…
-गिरिधर कुमार,crcc, crc मवि बैरिया,अमदाबाद, कटिहार
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