ऐसे होते हैं शिक्षक
ऐसे होते हैं शिक्षक!
न उन्हें कल का खबर
न अपने पोषण की चिन्ता
दूर पथगामी सोच लेकर
सिर्फ बच्चों के भविष्य का ही
अनदेखा शपथ सताता है।
भूल जाते अपने घर सँवारने
लग जाते दूसरों को सजाने में
न जाने कब कौन क्या कह देगा
तत्पर रखता अपने कान खड़े
सुन कड़वी बोली की न सदमें
उन्हें झकझोर पाता है।
बस कुछ मिल जाए भूख दबाने
न चटकदार न रसीले मन
बस रहता एक ही लगन लिए
कुछ कर दिखाने की होड़
कब किस ओर चल जाये
होते हैं ऐसे संयम पहाड़ सा।
बनकर शिष्ट वह बाँचना
चाहते शिष्टाचार के साँचें में
कर विनती नाथ प्रभु की सदा
अपने साथ उन मासूम की अदा
भूलकर भी क्षमा करना नहीं भूलते
भरी होती है ऐसी व्यथा।
छत्र छाया बन रहा करते
हो पथिक या अर्थोपार्जन लिए
कभी दिखाता नहीं अन्तर उनके
हँसमुख स्वभाव खामोश चेहरे पर
हृदय द्रवित सा हो जाता है
देख उदास मन जीवन बचपन का।
क्षमा, दान, शील, धैर्य सहन
कर स्वयं दूसरों को सिखलता
कर जोड़ या षष्टांग प्रणाम
सदा गुरू जी यही बतलाता
तू, तेरा, अपशब्द बोलकर
बाँध सत्य का डोर निभाता।
गर जो मैं भूल भी करता
राह तू वह न अपनाना
करता जो मैं वह तुम मत करना
नियम, नाम, ज्ञान सब यही बताता
नित्या-क्रिया समय पालन का
कठोर तपस्या तम से गुरूवर
निश्छल प्रकाशमय रसपान करता।
फल की चिन्ता किये बिन
राह खुशहाली हर पल अपनाता
कर्मठ कार्य बल चल मधुर
मुस्कान की पात हिलाकर
नैय्या की पतवार छोड़ नाथ पर
तिनकों पर भी वह गुजर जाता।
कभी नहीं सोचते कि मेरा क्या होगा
सदा सबकी चिन्ता उन्हें सताता
धूप-छाँव या हो बरसात की दौर
कहाँ कभी वह अडिग हो सुस्ताता
वही मन शांत सादा जीवन
सबमें अपनापन दिखलता।
सभी लगे रहते अपने ही चिन्ता में
पर गुरू ही हैं जो सुखी देखना चाहते
न उन्हें लालसा सीढ़ी चढ़ जाने की
न उतर कर ही पछताता
सदा असीम कृपा की ही बखान करते
होते अधिक प्रिय जो सिर्फ उसी से डरते।
भोला प्रसाद शर्मा
डगरूआ, पूर्णिया (बिहार)