Assistant teacher – Supriya Rani

कितना भी तुम रट लो साथी भारत भाल की बिंदी है

 पर गौरव और सम्मान के पथ पर खड़ी सिसक रही हिंदी है

स्वतंत्रता के चाह से निखरी ओजस्वी अभिव्यक्ति है ये 

तुलसी प्रसाद पंत निराला की सिंधु सी सृजन शक्ति है ये

निज भाषा अभिमान के रथ पर बिलख रही हिंदी है 

कितना भी तुम रट लो साथी भारत भाल  की बिंदी है

वागीशा का संगीत है इसमें ,मिश्री से शब्द तान गीत है इसमें 

राष्ट्र उन्नति का मूल है ये , शौर्य संस्कृति के अनुकूल है ये 

दिक् दिगंत गुणगान शपथ पर  भटक रही हिंदी है 

कितना भी तुम रट लो साथी भारत भाल  की बिंदी है

आओ सब प्रण कर लें साथी ,हिंदी को मस्तक मुकुट बनाएंगे 

व्याकरण, भाव ,शब्द साधना से भारत का भाल सजाएंगे 

विज्ञान और कला की देखो कैसी सुंदरतम सुर संधि है 

ये भारत भाल की बिंदी है, यह हिंदी है

हां हिंदी है।

सुप्रिया रानी 

 स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित

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