स्तनपान
धरती पर आकर शिशु बोला मां से,
दे दो मुझे मेरा हक मेरी माता।
छाती का अमृत पिलाकर के मुझको,
निभा दो तुम मां और बेटे का नाता।
मेरे मुंह में बोतल का निप्पल धराकर,
क्यों ममता को दूषित किये जा रही हो।
अपने को सुंदर दिखाने के चक्कर में,
हमको क्यों कुंठित किये जा रही हो।
सुना है कि मां के लिए सारी दुनिया में,
औलाद से बढ़कर कोई नहीं है।
इसी से तो तुम भी हमारे लिए मां,
कई कई रातों तक सोई नहीं है।
फिर भी दिया जो विधाता ने हमको,
वो अमृत तु खुद क्यों पिये जा रही हो।
अपने को सुंदर दिखाने के चक्कर में,
हमको क्यों कुंठित किये जा रही हो।
मिलेगा नहीं तेरे छाती का अमृत,
तो कैसे लड़ूंगा जमाने से मईया।
लगेंगे कई रोग तन में हमारे,
अधर में फंसेगी ये जीवन की नईया।
दे दो मुझे अपने सीने का अमृत,
क्यों अन्याय मुझपर किये जा रही हो।
अपने को सुंदर दिखाने के चक्कर में,
हमको क्यों कुंठित किये जा रही हो।
सभी मां को संदेश मेरा है सुन लो,
अगर जन्म देना तो स्तन धराना।
तुम भी रहो स्वस्थ, हम भी रहें मस्त,
वरना रखो अपना दामन विराना।
भीक्षा नहीं अपना हक मांगता हूं,
क्यों सीने को अपने सिये जा रही हो।
अपने को सुंदर दिखाने के चक्कर में,
हमको क्यों कुंठित किये जा रही हो।
अवधेश राम
उत्क्रमित मध्य विद्यालय बहुआरा
भभुआ कैमूर