राधाकृष्ण से सीताराम बनना है प्रेम- राजेश कुमार सिंह

वह प्रेम है ही नहीं जिसका उद्देश्य शरीर को पाना है। हर युग में प्रेम का मतलब राधा-कृष्ण बन जाना है।। माता-पिता एवं गुरुजनों को भुलाकर प्रेम नहीं होता। संस्कृति…

राष्ट्रभक्ति – अमरनाथ त्रिवेदी

राष्ट्रभावना की प्रबल ज्वाल में , नवगीत नित्य गाता हूँ । स्वप्नों में दिव्य चिनगारी है वह , जिसे रोज लिए फिरता हूँ । प्राण समर्पण करने से राष्ट्रहित ,…

घनाक्षरी”मेरी कामना” – एस.के.पूनम

जाग कर प्रातःकाल,निकलूँ अकेले राह, मेरे दोनों चक्षुओं में,भरे कई रंग हैं। मृदुल झंकार सुन,नव अनुराग चुन, मन पुलकित होता, जीने का ये ढ़ंग है। उस पथ को मैं चला,जहाँ…

जीवन का मर्म – कुमकुम कुमारी”काव्याकृति”

भूलकर भेदभाव,दिल में हो समभाव, जीभ पर रहे सुधा,प्रेम रस पीजिए। होठों पर मुस्कान हो,गम का न निशान हो, मीठे बोल बोलकर, सुख सदा दीजिए। जीवन में हो उमंग,चाह का…