दिवाली आज मनाएँगे- रामकिशोर पाठक

  दादा जी फुलझड़ी चाहिए, जगमग वाली लड़ी चाहिए, हम भी दीप जलाएँगे, दिवाली आज मनाएँगे। देखो पटाखे फूट रहे हैं, लगता तारे टूट रहे हैं, रंगोली भी तो बनाएँगे,…

स्लेट है तेरा भविष्य – रामपाल सिंह ‘अनजान’

यह स्लेट है तेरा भविष्य, तेरे संग है किसी का असीस। लग रहा है तुम अबोध नहीं, उन रेखाओं का तुझे बोध नहीं। एक गतिविधि में है तुम लीन, तुझ…

दोहावली – रामपाल सिंह ‘अनजान’

प्रात काल वो सूर्य को, करती प्रथम प्रणाम। सूर्य देव आशीष दें, रहे सुहाग ललाम।। प्रातकाल से है लगी, सजा रही है थाल। अमर सुहाग सदा रहे,सुना रही है नाल।।…