गंगा-जैनेन्द्र प्रसाद रवि

गंगा स्वर्ग से धरती पर आई, जन-जन की पातक नाशिनी गंगा। विष्णु के चरणों से निकली, शिव जटा निवासिनी गंगा।। विष्णुपदी, सुरसरी, जाह्नवी, कहीं मंदाकिनी बन जाती है। विविध नामों…

होली-लवली वर्मा

होली होली रंगों का त्योहार, फाल्गुन का पर्व विशेष। उड़ते रंग और गुलाल, मिट जाते हैं द्वेष-क्लेश। अच्छाई की जीत दर्शाता, होलिका दहन होता विशिष्ट। अनुराग होता चहुं ओर, उड़ते…

धरती माँ-कुमकुम कुमारी

धरती माँ माँ सी प्यारी धरा हमारी, हमको है प्राणों से प्यारी। देवों ने मिल इसे रचाया, वन-उपवन से इसे सजाया।। देखो कितनी लगती न्यारी, देती सुख-सुविधा है सारी। करें…

बदलाव-धर्मेन्द्र कुमार ठाकुर

बदलाव हुआ यूँ, समय बदल गया, बचपन बदला, युवा पीढ़ी बदल गया। रहन-सहन बदला, खान-पान बदल गया। रंग बदला, ढंग बदला चाल-ढ़ाल बदल गया। मानव बदला, उसमें मानवता बदल गयी।…

स्कूल चलें हम-विकास

स्कूल चलें हम उठाओ झोला उठाओ बस्ता शिक्षा पाना हुआ बहुत ही सस्ता वायरस ने किया था घर में बन्द बच्चों की पढ़ाई हुई थी मंद वैज्ञानिकों ने कमाल कर…

अनुराग समर्पित-दिलीप कुमार गुप्त

अनुराग समर्पित  धवल अन्तःकरण हो जागृत उपहास किंचित न हो प्रस्फुटित मिथ्या आचार सदा विसर्जित मन कर्म वाणी हो सदा सुसज्जित।  उर मैत्री भाव हो स्पंदित अश्रु प्रेम नैनन हो…

फिर से विद्यालय में-भोला प्रसाद शर्मा 

फिर से विद्यालय में अरे! चल-चल-चल-चल मेरे भाई, करली खूब मस्ती अब करले तू पढ़ाई।  फिर से अब खुल जाऐंगे विद्यालय हमारे, आयेंगे रोज हम बच्चे भी सब प्यारे। पापा…

अभिलाषा-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’

अभिलाषा मेरी यह तो अभिलाषा है उर को पावन नित बनाऊँ। जन-जन शिक्षा अलख जगाकर मन को सुघड़ कार्य लगाऊँ।। मेरी यह ——————-। भाग्य से मानुष तन मिला है। दिल…

प्रकृति का श्रृंगार बसंत-भवानंद सिंह

प्रकृति का श्रृंगार बसंत  बह रही है वासंती बयार भिनी-भिनी खुशबू बिखेरती, चले पवन हर डार-डार हिय से करूँ इसका आभार। नव पल्लव लग जाते हैं वृक्ष और लताओं में,…