मेले में छा जाती है,
रंग-बिरंगी रोशनी की चमक,
गुब्बारे, झूले, मिठाई की महक,
आँखों में जाग उठती है नई-नई चमक।
बर्गर , मोमोज और आइसक्रीम पर फिसलता जीभ का स्वाद ,
पारंपरिक झिलिया मुरही कचरी को करते दरकिनार ।
बालमन दौड़ पड़ता है,
हंसी और खिलखिलाहट संग,
रंगोली-सी स्मृतियाँ बुनता है,
हर कोने में खुशियों का रंग।
झूले की ऊँचाई से,
आसमान भी पास लगे,
खिलौनों के संग सपने सजें,
हर खिलौने की दुकान में भीड़ जगे ।
गुड़िया, बाजे और गुब्बारे ,
बचपन की प्यारी सौगात,
चम-चम करती दुकानें बोलें,
“आओ बच्चों! यहाँ मिलती हर सौगात।”
मेले का जादू ऐसा,
जिसमें खो जाए ये बाल मन,
और उत्साह के इस सतरंगी दुनिया में,
खिल उठे मुस्कान बालमन में ।
प्रस्तुति – अवधेश कुमार
उत्क्रमित उच्च माध्यमिक विद्यालय रसुआर , मरौना , सुपौल
