बालमन
कल्पनाओं के अंबुज में गोते लगाता बालमन,
भरना चाहता है सदैव उन्मुक्तता की उड़ान,
अंगीकार कर लेना चाहता है स्वच्छंदता की अनंत असीम विस्तार।
कौतुहल से भरी शिशु मन की मुस्कान,
समेट लेना चाहती है नन्ही उँगलियों में,
सारी दुनिया और जहान।
जिज्ञासाओं के संसार मे विचरता हुआ,
नित नए अनुसंधान से गुजरता हुआ,
निरीह, निश्चल, अनोखी निर्झर सी निर्झरनी में
ज्ञान की हर पायदान पर चढ़ता हुआ,
कल्पनाओं के स्वप्निल झिलमिल से,
जीवन की यथार्थता के पथ पे बढ़ता हुआ,
उम्मीदों के पतवार से जीवन की नैया खेता हुआ,
मार्गों से गंतव्य तक पहुंचते हुए,
बाल मन बालक रह पाएगा !
प्रियंका दुबे
जमालपुर मुंगेर
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