बस थोड़ी देर पहले…अवनीश कुमार

बस थोड़ी ही देर पहले तो…

बस थोड़ी ही देर पहले तो —
एक रंगीन तितली
फूलों की क्यारी में नाच  रही थी,
मैं तितली…. मै तितली ….
गा रही थी
सूरज की किरणों से लिपट रही थी ।
हवा की सरसराहट में…
पत्तियों की खड़खड़ाहट में….
अपने पंखों की छाया से खेल रही थी।

जीवन की मासूम प्रतीकता का पर्याय लग रही थी

शायद !
मकरंद की तलाश में,
मुस्कुराती- नाचती- गाती- उछलती 
अपने अस्तित्व पर गर्व करती
इठलाती बलखाती
फूलों पर बैठी हीं थी

तभी…. अचानक ….

एक बिगड़ैल हाथ उठा —
जिसमें न था,
कोमलता का भाव,
न सौंदर्य का सम्मान
न जीवन का भान ।

उस बेरहमी ने  नोच लिए
तितली के सारे पंख।

और फिर —
जहाँ था जीवन,
वहाँ रह गई सिर्फ़ निश्चल देह।

कहाँ मकरंद ?
कहाँ  उड़ान ?
कहाँ उत्साह ?
बस…
पल भर में  अंत।
बस …
पल भर में अंत ।

बस थोड़ी हीं देर पहले तो…..
एक रंगीन तितली
फूलों की क्यारी में नाच रही थी ।


लेखन व स्वर :-
अवनीश कुमार
व्याख्याता
बिहार शिक्षा सेवा
(शोध व अध्यापन उप संवर्ग)

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