दूर तक चलते हुए – शिल्पी

घर की ओर लौटता आदमी होता नहीं कभी खाली हाथ हथेलियों की लकीरों संग  लौटती हैं अक्सर उसके अभिलाषाएं, उम्मीद, सुकून और थोड़ी निराशा   घर लौटते उसके लकदक कदम…

हिंदी : हमारी अस्मिता – अविनाश कुमार

हिन्द देश के हिंदी हैं हम, हिंदी से है पहचान हमारी। रक्त बहे या लहू बहे, बस हिंदी है अस्मिता हमारी  यह देश की शान है, बैभव है  मातृभूमि की…

मेरी हिंदी तू मेरे मौन को आवाज़ देती है। – रीतु वाजपेयी

तू मेरी मौन पीड़ा में, मेरी आवाज़ बनती है, पोंछकर अश्रु, सरल शब्दों से दुलार करती है।   तेरे अस्तित्व में मेरी लेखनी, विहार करती है, गूढ़ अर्थों से तू…