शरद पूर्णिमा का सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता चाँद। दूधिया रोशनी बिखेरता प्रेम चाँदनी संग दिलोंजान से करता। घटता बढ़ता चाँद वक़्त परिवर्तन की सुंदर कहानी कहता। शीतलता चाँद…
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मनहरण घनाक्षरी- जैनेन्द्र प्रसाद ‘रवि’
दिन भर काम करे, कभी न आराम करे, अकेली सुबह शाम, भोजन बनाती हो। हमें विद्यालय भेज, कपड़े बर्तन धोती, काम से फुर्सत नहीं, खाना कब खाती हो? जब नहीं…
दोहावली- रामकिशोर पाठक
अपने मन की कीजिए, रखकर मन में चाव। औरों की वो मानिए, जो हो सही सुझाव।। सत्य वचन हीं बोलिए, रखकर मधुर जुबान। वैसा सत्य न बोलिए, जो करे…
हरिगीतिका- रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
नवरात्रि में माॅं अन्नपूर्णा, रोहिणी कहलाइए। तू सात्त्विकी कल्याणकारी, चंडिका बन आइए।। काली त्रिमूर्ति महेश्वरी भव, भद्रकाली नाम हैं। आराधना करते सभी तो, लोग जाते धाम हैं।। संहार दैत्यों के…
विधाता छंद: एस. के.पूनम
चरण छूलूँ भवानी माँ, पनाहों में मुझे पाओ। महादेवी जगतजननी, मुझे तो छोड़ मत जाओ। सदा तुम कष्ट ही हरती, तुम्हारे पास जो जाता। मिटेगा पाप उसका भी, दया…
दोहावली – देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
दो अक्टूबर जन्म है, दो पुरुषों के नाम। गाँधी प्यारा एक है, दूजा लाल ललाम।। गाँधी जी का जन्म है, प्रांत नाम गुजरात। भाव एकता सूत्र का, दिया नवल…
विधाता छंद- एस. के. पूनम
कहे गोविंद श्यामा से, मिलूँगा मैं अकेले में। कही राधा अनंता से, पडूँगी ना झमेले में। सदा से ही सखी वृंदा, अजन्मा की दिवानी है। नयन भींगे हृदय बिंधे,…
मनहरण घनाक्षरी- रामपाल प्रसाद सिंह
उपदेश देकर जो, जिंदगी सवार लेते, बेचकर निज कर्म, सहज बनाते हैं। दुनिया को कहे फिर, ,बेकार हैं मोती हीरे, खुद छिप-छिपकर, कुबेर सजाते हैं। उजाला में सत्य जब, नंगा…
गीत- रामपाल प्रसाद सिंह
आज जयंती है दिनकर की, अपनी रचना लिखकर गाओ। जिसने लिखकर समय को मोड़ा, उनकी रचना सुनो सुनाओ।। विषम काल में जीवन पाकर, निर्भयता से लिखना सीखें। बीत गए दशकों…
विधाता छंद – एस. के. पूनम
सहज हिंदी सरल भाषा, धरातल भी दिवाना है। कहीं बिंदी कहीं नुक्ता, जमाना भी पुराना है। चलीं कलमें जगी आशा, कुशलता को बढ़ाना है। थकी हिंदी गलत सोचा, समग्रता को…