संघर्ष संघर्ष बिना इस दुनियाँ में कुछ भी पाना आसान नहीं, बिना संघर्ष किये खुद को मानव कह देना ठीक नहीं। संघर्ष करके नन्ही चींटी मिट्टी का घरौंदा बनाती है,…
Category: sandeshparak
Sandeshparak poems are poems that are used to convey a message with feelings. Through poems, statements related to the country, the world, and society are transmitted to the people. Teachers of Bihar give an important message through the Sandeshparak of Padyapankaj.
आया सूरज-एम० एस० हुसैन “कैमूरी”
आया सूरज आया सूरज आया सूरज नव उम्मीदों की ये किरण अपने साथ है लाया सूरज आया सूरज आया सूरज। चिड़िया भी है चहक रही कलियां भी है खिली हुई…
हरदम पढना है-विजय सिंह नीलकण्ठ
हरदम पढना है हम सबको हरदम पढ़ना है कुछ ना कुछ तो ज्ञान बढ़ेगा ज्ञान कलश ऐसा हो जाए जो सागर दिन-रात बहेगा। जो भी मिले उसे पढ़ने से थोड़ा…
बदलाव-धर्मेन्द्र कुमार ठाकुर
बदलाव हुआ यूँ, समय बदल गया, बचपन बदला, युवा पीढ़ी बदल गया। रहन-सहन बदला, खान-पान बदल गया। रंग बदला, ढंग बदला चाल-ढ़ाल बदल गया। मानव बदला, उसमें मानवता बदल गयी।…
स्कूल चलें हम-विकास
स्कूल चलें हम उठाओ झोला उठाओ बस्ता शिक्षा पाना हुआ बहुत ही सस्ता वायरस ने किया था घर में बन्द बच्चों की पढ़ाई हुई थी मंद वैज्ञानिकों ने कमाल कर…
अनुराग समर्पित-दिलीप कुमार गुप्त
अनुराग समर्पित धवल अन्तःकरण हो जागृत उपहास किंचित न हो प्रस्फुटित मिथ्या आचार सदा विसर्जित मन कर्म वाणी हो सदा सुसज्जित। उर मैत्री भाव हो स्पंदित अश्रु प्रेम नैनन हो…
अभिलाषा-देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
अभिलाषा मेरी यह तो अभिलाषा है उर को पावन नित बनाऊँ। जन-जन शिक्षा अलख जगाकर मन को सुघड़ कार्य लगाऊँ।। मेरी यह ——————-। भाग्य से मानुष तन मिला है। दिल…
प्रार्थना में शक्ति है-अनुज वर्मा
प्रार्थना में शक्ति है सबसे सुंदर भक्ति है प्रार्थना सबसे सार्थक युक्ति है प्रार्थना भक्त की शक्ति है प्रार्थना कर्णप्रिय श्रुति है प्रार्थना ।१। ईश्वर प्राप्ति की पहल है प्रार्थना…
दृढ़ संकल्प-अर्चना गुप्ता
दृढ़ संकल्प दृढ़ संकल्प करें हम मन से, हिन्दी का उत्थान करेंगे। हिन्दी है जनमानस की भाषा, हो सर्वोन्नति, अभियान करेंगे। है हिन्दी से हिन्दुस्तान हमारा, हृदय से इनका सम्मान…
पेड़ लगाना होगा-अमित आर्यन
पेड़ लगाना होगा घुटते घुटते कहीं ये उपवन मर न जाए, हालत देख धरा की जीवन डर न जाए, ध्यान धरो ओ ! मानव कुछ अपने कर्मों का, कहीं तुम्हारी…