चन्दा मामा
नील गगन में एक चन्द्रमा
निशा की तिमिर मिटाता है,
धरा पर फैले उसकी चाँदनी
शीतलता पहुँचाता है ।
बच्चे मामा कहते उसको
खिलौने लेकर आओ ना,
दूध-भात भी लेते आना
जी भरकर खिला ओना ।
एक आकार में कभी न रहता
कभी घटता कभी बढ़ता है,
पूर्णिमा का दिन जब आता
पूरा गोल हो जाता है ।
तारों की है फौज साथ में
लेकर आगे बढ़ते हैं,
शत्रु रूपी अंधेरों पर
विजय प्राप्त कर लेते हैं ।
एक अकेला चन्दा मामा
सबके मन को भाता है,
उसकी रौशनी की शीतलता
मन को सुकून पहुँचाता है ।
चम-चम चमके चन्दा मामा
रात के अंधियारों में,
वैसे चमके इस जहाँ में
भारत! दुनिया के भालों पर ।
भवानंद सिंह
अररिया, बिहार
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