संस्कार
संस्कारों की छाँव में
बड़े-बुजुर्गों की पाँव में
मिल रहे सदाचरण अब भी गाँव में।
संस्कारों की थाती अब भी बसती है गाँव में,
ममत्व, प्रेम, त्याग, स्नेह, अर्पण
है परिभाषा दिखलाता गाँव का दर्पण।
है भावना समर्पण की बची, अब भी गाँव में क्योंकि
संस्कारों की छाँव में,
बड़े-बुजुर्गों की पाँव में
मिलते शिष्टाचरण अब भी गाँव में।
शहर में वृद्ध-जनों की लाचारी,
एकाकीपन, खालीपन देखकर होती है दुश्वारी ।
गाँव अब शहर से दूर नही,
हाल यदि कहीं यही रहा तो;
कहीं शहर का दुष्चरित्र न बस जाए गाँव में,
नहीं मिल सकेंगे संस्कारों की छाँव बड़े बुजुर्गों की पाँव में।।
अवनीश कुमार
प्रधानाध्यापक
उत्क्रमित मध्य विद्यालय अजगरवा पूरब
प्रखंड पकड़ीदयाल
जिला पूर्वी चंपारण (मोतिहारी)