दर्पण की अदाकारी
सोलह श्रृंगार कर जब दर्पण
सम्मुख इतराते सब,
सुन तारीफें खुद की
मन ही मन इठलाते सब।।
दूसरों के सामने झूठ बोलने से
नहीं कोई कतराते जब,
देख पटल पर छवि स्वयं की
फिर आप ही सकुचाते सब।।
घृणित भाव जो देख दरिद्र की
खुद को दूर भगाते सब,
मन दर्पण में, कर्म अर्पण के
सेवा भाव कब लाते सब।।
मनभावन दर्पण की अदाकारी,
क्षण में टूटे होत क्षयकारी।।
मन दर्पण जो खोलें सब जन,
अपनी बात को तोले सब जन।।
खोल द्वार मन दर्पण के,
भाव रख प्रेम समर्पण के।।
प्रियंका प्रिया स्नातकोत्तर शिक्षिका(अर्थशास्त्र) श्री महंत हरिहरदास उच्च विद्यालय, पूनाडीह पटना, बिहार
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