धन्य हैं सृजक धन्य टी.ओ.बी.
धन्य हैं सृजक, धन्य टी.ओ.बी.
जिसने इसे नया आयाम दिया।
बुद्धि विवेक से सींच सींच कर
पुष्पित पल्लवित काम किया।।
सुभग पावन पुष्पहार लाकर
इसको सदा अभिराम किया।
सुगठित कर नेक विचारों से
अविरल सुखद ललाम दिया।।
नूतन सरल सुविचारों से नित
एक मुदित सुहानी भोर दिया।
नवाचार से हम कविजन को
इस आँगन मन-मोर किया।।
सभी को टीओबी का अंग मान
सदा एक जैसा ही प्यार दिया।
गद्यगुंजन और पद्यपंकज का
एक सुघड़ सरस उपहार दिया।।
शिक्षा के पावन भावन मंच पर
SOM को एक सुन्दर रूप दिया।
लॉकडाउन में ‘देश भविष्य’ को
शिक्षा से रोचक अनूप किया।।
कभी रंग बिरंगी चीजें सिखाकर
बच्चों का नित मन बहलाया।
योगाभ्यास एवं योगदूत बनकर
जीवन उपयोगी मंत्र बतलाया।।
संकट की घड़ी में सहायक बन
अपने कर्मों में नया रंग लाया।
समवेत स्वर से स्नेह बरसाकर
बंधुओं, बहनों को गले लगाया।।
सदा धन्य हैं सर्जक टीओबी के
जिन्होंने पावन समीर बहाया।
शिक्षा का सतत अलख जगाकर
एक अभिनव इतिहास बनाया।।
ऐसे सृजक को शत् शत् वंदन
राष्ट्र करे एक दिन अभिनंदन।
सरल सौम्य और शांति भाव से
हो चहुँओर टीओबी-अनुगुंँजन।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भागलपुर, बिहार