दिवाली
शुद्ध करके निज मन मंदिर को,
लक्ष्मी गणेश का आह्वान करें,
कुबेर देव दे धन और वैभव,
शांत चित्त से हम ध्यान करें।
आज संपूर्ण ब्रह्मांड है सुसज्जित,
दीप माला से संसार है सुशोभित,
हर्षोल्लास की सीमा है असीमित,
सारी सृष्टि है प्रकाश से निमज्जित।
धरा से व्योम तक फैली दीप्ति,
सुख से मिली आत्मा को तृप्ति,
जुगनू का इतराना ऐसा हुआ,
मानों पुलकित हो उठी सारी सृष्टि।
सजावट रंगोली की अति मनोरम,
अतिशबाजी से गगन गूँज उठा है,
अविस्मरणीय है दीवाली का त्योहार,
यह देख मन का बगीचा झूम उठा है।
दीवाली के अखंड दीये की भाँति,
जलकर जहाँ को रोशन कर जाएँ,
सार्थक करें निज अमूल्य जीवन को,
संसार में अनंत खुशियाँ फैलाएँ।
सुषुप्त चेतना में इक ज्योत जलाएँ,
अज्ञानता के अंधकार को भी मिटाएँ,
कमला, गणपति को भोग चढ़ाकर,
प्रेम भाव से हमसब दिवाली मनाएँ।
नूतन कुमारी (शिक्षिका)
पूर्णियाँ बिहार