दोहावली
उत्तरायणी पर्व का, हुआ सुखद आगाज।
ढोल नगाड़े बज रहे, होंगे मंगल काज।।
सूरज नित अभिराम है, जीवन का आधार।
देव रूप पूजे सदा, सारा ही संसार।।
बदल दिशा दिनकर रहे, छाई खुशी अपार।
पावन भावन रूप में, आया यह त्योहार।।
गुड़ तिल के मधु मिलन से, महक रहा घर द्वार।
रसना रस ले मुदित मन, दश दिश खुशी बहार।।
रूप गगन का देखकर, छाई नई उमंग।
नेह प्रेम उर जग रहा, भ्रात जनों के संग।
ले पतंग बहुरंग की, बच्चे खुश हैं आज।
उड़ पतंग को काटते, बालक संग समाज।।
बेला है यह संक्रमण, रखें देह का ध्यान।
दही संग खिचड़ी सदा, उत्तम भोजन जान।।
कटती हुई पतंग यह, देती है सन्देश।
जीवन नश्वर ही सदा, रखें न कोई क्लेश।।
चिंता तज चिंतन करें, करें सूर्य का ध्यान।
उगते सूरज को सदा, असल देवता मान।।
तिल तिल संकट नित कटे, बढ़े प्रेम उल्लास।
यही दिव्य सबसे कहे, हिय में रखें मिठास।।
देव कांत मिश्र ‘दिव्य’
भागलपुर, बिहार