सुमेरु छंद (10,9)
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गर्व से हिंदू कहे तो।
घटा घनघोर नभ,छाई कहाॅं से।
गई थी लौट कर,आई कहाॅं से।।
हजारों रश्मियाॅं, लाचार अब हैं।
लगा सूरज जरा,बीमार अब हैं।।
मगर तय राह पर,चलती गई माॅं।
सनातन सत्य में,फलती गई माॅं।।
सुखी संसार हो, कहती चली है।
तपस्या क्लिष्ट को,लेकर पली है।।
सहज वह वन गमन,स्वीकार करती।
हृदय में देवता,साकार करती।
चले हम गर्व से, हिंदू कहें तो।
पुरानी राह पर,शाश्वत चलें तो।।
फलेंगे हम सदा,विश्वास से ही।
बढ़ेंगे माॅं छठी,के आस से ही।
चले हम घाट पर,होगें निरोगी।
करेंगे सप्तरथी,उपकार योगी।।
सभी की ऑंख हैं,लटकी गगन से।
तपस्वी देखती,मन के नयन से।।
उतरकर घाट में,वो गा रही है।
ढके सूरज गगन,से ला रही है।।
रहेगी ही मना,कर ठान ली है।
कठिन को भी सरल,वह मान ली है।।
चले’अनजान’तो,आशीष लेने।
दुखी इंसान को,कुछ सीख देने।।
गिरे संस्कार पर,कुछ कह रहे हैं।
पुराने भवन हैं,कुछ डह रहे हैं।।
मगर नींव इसकी,गहरी बड़ी है।
इमारत आज भी,जिस पर खड़ी है।।
रामपाल प्रसाद सिंह ‘अनजान’
प्रभारी प्रधानाध्यापक मध्य विद्यालय दरवेभदौर
