आओ आज के दिन
कुछ इतना कर लेते हैं
हिंदी दिवस! का स्वागतम
मन प्राणों से करते हैं!
आओ करें अनुभूत
जो असल है, निरन्तर है
जो सत्य है, कल्पना भी है,
और जो चिंतन है…
प्राकृत के हेल मेल से
संस्कृत के संस्कार से
अवधी, ब्रज, मागधी और
अनेक संग धार से
यह सरिता बनी है
अनूठी सजी है
जो हम ही हैं हिंदी
है हिंदी हमारी…
वात्सल्य से भरी वह
जो आँचल है माँ की
हिंदी! तू अनुपम!
जो छाया हमारी…
अक्षुण्ण रख सको तो
अच्छा बहुत है
अभी हाल देखो तो
कच्चा बहुत है…
जो सपनों की भाषा
जो अपनी परिभाषा
जो दुनिया के लिए भी
बनी है एक आशा,
उस हिंदी को आओ,
प्यार करते हैं!
यह सुंदर, प्रिय है,
स्वीकार करते हैं…
अंग्रेजी हो या फिर
कोई और भाषा,
कोई दुराव की नहीं है अभिलाषा,
बस अपेक्षित यही कि
जो मुख्य प्रकृति है,
जो भी सामंजन है,
साधक हिंदी है…
सरलता, मधुरता का मानस यही
लालित्य, चपलता का साहस यही
सत्य यही
व्यंजना यही
कवि तुम्हारी कल्पना यही…
आओ, हम इसका व्यवहार
करते हैं,
गले लगाते हैं,
धन्यवाद करते हैं…
आओ, आज के दिन
कुछ इतना कर लेते हैं…
गिरिधर कुमार (शिक्षक)
उ. म. वि. जियामारी
अमदाबाद, कटिहार